आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या Daily Schedule According To Ayurveda in Hindi

असल में आयुर्वेद की दिनचर्या वात, पित्त एवं कफा के कालों के प्रभाव को दृष्टि में रखकर निर्धारित की जाती है. यह प्रकृति के साथ सामंजस्य से ...

असल में आयुर्वेद की दिनचर्या वात, पित्त एवं कफा के कालों के प्रभाव को दृष्टि में रखकर निर्धारित की जाती है. यह प्रकृति के साथ सामंजस्य से चलने का सही तरीका है जिससे व्यक्ति स्वतः ही निरोग रहता है. इसे समझने के लिए फिरसे याद कर लेते हैं कि वात, पित्त तथा कफ की मूल प्रकृति.
वात– वायु तत्व जो गति के कार्य करने वाला तत्व है, पित्त– अग्नि तत्व जिससे चयपचय की क्रिया होती है तथा कफ -जल तत्व जो कि स्थिरता प्रदान करने वाला तत्व है. आयुर्वेद में दिनचर्या इन कालों के अनुरूप होनी चाहिए, इनके विपरीत नहीं.
आयुर्वेद के अनुसार रात्रिकाल को 14 भागों में विभक्त किया गया है जिनका प्रारंभ सूर्यास्त के पश्चात होता है. ऋषि परंपरा के अनुसार व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ पाने हेतु रात्रि के 14 वें हिस्से में जाग जाना चाहिए. ये समय सूर्योदय से 2 घंटे पूर्व होता है. अतः कहा जा सकता है कि आयुर्वेद के अनुसार 4-5 बजे के बीच में उठना व्यक्ति के लिए श्रेयस्कर है. इस समय वातावरण में सत्व गुण व्याप्त होता है. वातावरण में ताज़ा प्राण वायु का संचार एवं शुद्ध उर्जा इस समी प्राप्त होती है. शौच आदि, योगाभ्यास, व्यायाम तथा गति मई क्रिया के लिए उपयुक्त काल है.
प्रातः जागरण के उपरांत घर की चार दीवारों से बाहर निकलकर प्राण वायु को फेफड़ों में भरना चाहिए. सुबह में प्रकृति दर्शन करना, सूर्योदय के दर्शन करना या सूर्य देव की लालिमा को जल की धारा के पार से त्राटक करना हितकर है. इससे शरीर में इंफ़्रा-रेड किरणें, ईओन्स (infra-red rays, eons ) जस्प होती हैं जिससे समस्त प्रकार के रोग यूँ ही समाप्त हो जाते हैं.daily routine ayurveda hindi
विसर्जन: इसके पश्चात जल अथवा त्रिफला का सेवन कर मल विसर्जन अवश्य कर लेना चाहिए. क्योंकि यह वातज काल है, इस क्रिया का उचित काल यही है. नियमित प्रातः जागरण से शरीर की लय प्रकृति से स्थापित हो जाएगी एवं सहज ही सुबह पेट सॉफ होने लगेगा.
शरीर का  बाह्य शुद्धीकरण: आंतरिक सफाई के बाद शरीर को उचित  सफाई करनी छाईए. दाँतों  और मुख की सफाई का सर्वश्रेष्ट तरीका है नीं की दातुन करना. नीम की डंडी को रात भर पानी में भिगोकर रखने से वह नर्म हो जाती है. इसे दाँतों से चबाकर टूथब्रश का कार्य लिया जा सकता है.  मसूड़ों, दाँतों और जिव्हा को इससे सॉफ करें. यदि आपको नीम की दातुन आसानी से नही मिल सकती तो ब्रश से दाँतों को अच्छी तरह सॉफ करें.Neem datun daily routine ayurved hindi ज़्यादातर लोग दांतो के ब्रश को सही ढंग से इस्तेमाल नही कर पाते. हफ्ते में दो दिन इस ब्रश को तपते गर्म पानी में रखकर धोना चाहिए. ब्रश करने के बाद इसे बाथरूम में ना रखें अतः किसी खुली, और सॉफ स्थान पर रखें जहा यह सूख जाए. अच्छा रहे यदि टूथब्रश धूप में रखा जाए. इससे ब्रश में मौजूद सभी नुक़सानदायक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं. (बाथरूम में ब्रश रखने से ख़तरनाक रोगकारी कीटाणु इसमें अपना घर बना लेते हैं तथा रोज़ मुख के ज़रिए आपके शरीर में प्रवेश करते हैं). आपको जानकार हैरानी होगी की मुख की सफाई हृदय के स्वास्‍थ्य के लिए कितनी आवश्यक है. जिन व्यक्तियों के दाँतों पर और जिव्हा पर प्लॅक (plaque) की परत जम जाती है, वह फिर पेट से उनकी रक्त धमनियों में भी प्रविष्ट हो जाती है और इनमें भी परत जमती है जो हृदय रोगों की कारक है. इसलिए मुख को सदा सॉफ रखें. टंग क्लीनर (tongue cleaner) द्वारा जिव्हा की सफाई करें . दाँतों के बीच फ्लॉस (floss) का इस्तेमाल करें. और गर्म पानी को मुख में भरकर उससे गरारे करें.
आँखों में ग्लिसरीन रहित (non-glycerine) गुलाब जल को लेकर हल्का हाथ से धोएँ. कानों को पानी से सॉफ करें. इन इंद्रियों की सफाई से शरीर में सक्रियता उत्पन्न होगी.daily bath routine ayurved hindi
शरीर की मालिश: इसके पश्चात शरीर पर तिल तेल, अथवा नारियल या सरसों के शुद्ध तेल से शरीर की मालिश करनी छाईए. इससे वात का शमन होता है तथा शरीर की त्वचा और अंगों को पोषण मिलता है. इससे प्राकृतिक रूप से झुरिर्यों से बचाव होता है तथा इन प्राकृतिक तेलों में जीवाणु- नाशक (anti-bacterial) गुण भी पाए जाते हैं.
व्यायाम/ योगासन: इसके पश्चात हल्का व्यायाम करें. सूक्ष्म व्यायाम में पावनमुक्त आसनों का अभ्यास अति श्रेयस्कर है. इससे शरीर के जोड़ों में फसे हुए वात को निकालने में सहयता मिलती है. ये करने में बहुत आसान है. इन्हें किसी योग निर्देशक से सीख लेना चाहिए. सूर्य नमस्कार अथवा अन्य आसन का अभ्यास अगर किया जाए तो अत्यंत लाभ मिलता है.
स्नानम: आयुर्वेद में सिर के नीचे के हिस्से का गर्म अथवा कुनकुने पानी से प्रतिदिन स्नान करना निहित है. यदि ग्रीष्म ऋतु है तो ठंडे जल से भी स्नान किया जा सकता है. स्नान करने से ना केवल शरीर को शुद्धि मिलती है अपितु जठराग्नि भी प्रदीप्त (improves digestion) होती है. सिर धोने के लिए हमेशा ठंडे जल का ही प्रयोग करें.
ध्यान: इसके पश्चात कुछ समय व्यक्ति को ध्यान अथवा जप में बिताना चाहिए. इससे मस्तिष्क में उर्जा उत्पन्न होती है. यह मन की शुचिता के लिए नित्यप्रति किया जाना चाहिए. कम से कम 15 मिनट ध्यान में अवश्य बैठें. ऋषियों के अनुसार इस शुचि के बाद ही व्यक्ति को घर से बाहर निकलना चाहिए जिससे उसका व्यवहार उत्तम और कार्य मंगलमय होता है.dhyan ayurveda hindi
इसके पश्चात शुद्ध, पौष्टिक स्वादु और हल्का नाश्ता करना चाहिए. नाश्ते लेना परम आवश्यक है क्योंकि यह दिन का सर्वप्रथम आहार है.
दोपहर का भोजन: सुबह के नाश्ते के 4-5 घंटे के बाद दोपहर के भोजन की बारी आती है. आयुर्वेद के अनुसार यह दिन का सबसे प्रमुख भोजन है. यह अधिक गरिष्ट, और अधिक उर्जादायी पदार्थों से परिपूर्ण होना चाहिए. इसके ग्रहण करने के बाद व्यक्ति को पाँच मिनट अवश्य टहलना चाहिए.
संध्या: संधिकाल आत्मिक विकास और स्व-चिंतन का सर्वश्रेष्ठ समय है. इस समय व्यक्ति में ध्यान, जप अथवा ईश्वर-आराधना का विशेष महत्व है.
रात्रि का भोजन: आयुर्वेद के नुस्सार रात्रि का भोजन 6 से 8 बजे के बीच हो जाना चाहिए. सोने से पूर्व कम-से-कम 4 घंटे पहले रात्रि का भोजन करना सर्वश्रेष्ठ है. भोजन हल्का एवं सुपाच्य होना चाहिए. भोजन के उपरांत 15 मिनट तक टहलना या वज्रासन में बैठना अत्यंत लाभदायक है.
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शयन: आयुर्वेद के अनुसार रात्रि के दूसरे पहर में सोने का विधान है. 10 बजे तक आप शयन के लिए अपने बिस्तर पर लेट जाएँ. उसके पहले कुछ देर परिवार जनों के साथ सुंदर समय बिताएँ. एक-दूसरे का हालचाल पूछें और परिवारिक सुख का आनंद लें. हल्का मधुर संगीत भी सुन सकते हैं. ये मन को विश्रान्ति देने हेतु लाभदायक है. सोने से पूर्व 5-10 मिनट प्रार्थना अवश्य करें.

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